Saturday 2 April, 2022

कुराआने करीम और मासूमीन के फरमान

 


इस में किसी को शक व शुबहा करने की गुंजाईश  नहीं के दीने इस्लाम की अस्ल और बुनियाद कुरान मजीद ही है. 

जनाबे रिसालत मआब (स.अ.) और अइम्माए ताहेरीन (अ.स.) की हदीसें भी इस्लामी शरीयत में बुनियादी हैसियत रखती हैं.


लेकिन,
वोह इस लिए के उन की ज़ुबाने हक्क़, क़ुरआने करीम का ही बयान थी.

यही वजह है के जब किसी मासूम (अ.स.) से अपने बयान की सच्चाई पेश करने के लिये दलील तलब कर ली जाती थी तव आप बिला ताम्मुल और देरी के कुरआने मजीद की आयात पढ़ दिया करते थे और 

जिस मक़ाम पर सामईन को मासूम के किसी बयान को कुरआन के मुताबिक़  होना मालूम होता था तो वह ख़ामोशी से मासूम की बातें सुनते थे

इसी बिना पर तो मासूम ने खुद बार बार इरशाद फ़रमाया के हमारी हदीसों में से जो कुरआन के मुताबिक़ न हो उसे दीवार पर मार दो, वह हमारी नहीं बल्कि हमारी तरफ मंसूब कर दी गई है. अगर  वह  हमारी है तो वह कुरआन के ख़िलाफ़ नहीं हो सकती.

चुनान्चे, मासूमीन का कुर आन के साथ होना और कुर आन का उन के साथ होना हदीसे सक़लैन और नबी (स.अ.) से दूसरी हदीसें से साफ़ ज़ाहिर है.

बहेर कय्फ़ दीनी और इस्लामी ओलूम का दारोमदार और बुनियाद कुरआन मजीद ही है. 


2 comments:

Unknown said...

اگر ایسا ہی ہے تو روایات و احادیث معصومین کا قرآن سے مختلف بالکل نہیں ہونا چاہئے ۔ لیکن ہم دیکھتے ہیں کہ اکثر روایات قرآن کے تابع نہیں بلکہ تاویل کر کے اس کو قرآن کےمطابق کیا جاتا ہے۔۔ لہزا جو تاویلیں پیش کرتے ہیں یا ان کی تائید کرتے ہیں ،انھیں سورت آل عمران کی آیت ٧٧ سے عبرت حاصل کرنا چاہیے ۔

Syed mahboob Hallauri said...

बहुत ही खूबसूरत तअर्रुफ है। जज़ाकल्लाह