Tuesday, 19 April 2022

कुरआन शफाअत करने वाला है

 


जो कुरआन से हम मजलिस हुआ वो ज़्यादती या कमी लेकर उठा 

यानी हिदायत में ज़्यादती और गुमराही में कमी 

और यकीन जानिये कि कुरआन हासिल कर लेने के बाद कोई फ़क़्र नही और कुरआन हासिल कर लेने से पहले कोई दौलतमंदी नही। 

इस से अपनी बीमारियों की शिफा हासिल करो और  मसायेब दूर करने के लिये उससे मदद तलब करो. 

यक़ीनन  ये सख्त बीमारियां यानि कुफर, मुनाफ़िक़त, और गुमराही का वाहिद इलाज है। 

अल्लाह से उसी के ज़रिये दुआ मांगो  और उसी की मोहब्बत लेकर बढ़ो 

और उसके ज़रिये उसकी मखलूक़ से न मांगो, क्योंकि बंदों की (खालिक की तरफ) तवज्जोह के लिये उस जैसा और कोई ज़रिया नही. 

यकीन रख्खो ये वो शफाअत करने वाला है जिसकी शफाअत क़बूल होगी  

और ये वो बोलने वाला है जिसकी बात तसदीक़ शुदा है. रोज़े महशर जिसकी कुरआन ने शिफाअत कर दी उसकी शिफाअत क़बूल हुई।

(इमाम अली (अ.स.) के खुतबे का एक हिस्सा)

Wednesday, 6 April 2022

कुरआन की तिलावत करना और सुनना

 


एक मर्तबा इमाम  हुसैन (अ.स.) ने कुरआन  की तिलावत करनेवाले और उस के सुनने वाले का बेहद सवाब बयान फ़रमाया, तो एक शख्स जो कबीले असद से ताल्लुक़ रखता  था उसने पूछा के हुज़ूर ! यह सवाब तो उसका है जो पढ़ा लिखा हो और जो अनपढ़ हो वोह क्या करे? 

आप (अ.स.) ने फ़रमाया: ए असदी खोदा जवाद और करीम है. जैसा पढना आता है वैसा ही पढ़े. उसको भी वैसा ही सवाब मिलेगा.

इमाम रेज़ा (अ.स.) से रवायत है:

हर इंसान को ताकीबाते नमाज़े सुबह के बाद 50 आयात तिलावत करनी चाहिए... 

क़ुरआन का इल्म


 क़ुरआन का इल्म एक ऐसा इल्म है जिस में दुनिया और आख़िरत की ख़ैर और बरकत के राज़ छुपे हैं। 

लिहाज़ा तमाम ओलूम के मुक़ाबले में क़ुरआन का इल्म हासिल करना ज़्यादा एहम और ज़रूरी है. 

इस इल्म का तर्क करना दीन और दुनिया की बरकत  से महरूमी का सबब है 

जो सिर्फ़ सख्त दिली  ही का नतीजा है. 


हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ .स.) अपने एक ख़ुत्बे में फ़रमाते फरमाते हैं:

यक़ीनन यह वह ख़ैर ख़्वाह है जो कभी धोका नहीं करता. 

ऐसा हादी है जो कभी राह गुम  नहीं करता और 

ऐसा बयान करने वाला है जो झूट नहीं कहता. 

Monday, 4 April 2022

क़ुरआन ज्यादा पढ़ने सुनने से पुराना नहीं होता


 तफसीरे बुरहान में जनाब रिसालत मआब (स.अ.) से नक्ल है के आप ने फ़रमाया के ख़ुदा अस दिल को अज़ाब न करेगा जिस में कुरआन महफ़ूज़ हो.

तुम में से नेक तरीन इंसान वह है जो क़ुरआन सीखे और सिखाए .

हज़रत अमीर (अ.स.) फ़रमाते हैं: अल्लाह की किताब लाज़िम पकड़ो क्यूँ की यही मज़बूत रस्सी और वाज़ेह रोशनी और नफ़ा बख्श तंदुरुस्ती और तमस्सुक पकड़ने वाले के लिए बचाव का ज़रिया और ताल्लुक़ रखने वाले के लिए नजात का रास्ता है.

यह कज नहीं के इस्लाह का मोहताज हो.

इस में टेढ़ा पन नहीं के हर्फ़गीरी हो सके..

ज्यादा पढ़ने सुनने से पुराना नहीं होता .

जिसका कौल क़ुरआन के मुताबिक़ हो वो सच्चा और जिसका अमल क़ुरआन के मुताबिक़ वह साबिक़ है.

आपने मजीद फ़रमाया के क़ुरआन का ज़ाहिर दिलकश और बातिन दूर रस है. और इस के अजायेब और गरायेब घैयरे फानी बे हद्द और पायां हैं..

जिहालत की तारीकियां सिर्फ़ इसी से दूर हो सकती हैं.

Saturday, 2 April 2022

कुराआने करीम और मासूमीन के फरमान

 


इस में किसी को शक व शुबहा करने की गुंजाईश  नहीं के दीने इस्लाम की अस्ल और बुनियाद कुरान मजीद ही है. 

जनाबे रिसालत मआब (स.अ.) और अइम्माए ताहेरीन (अ.स.) की हदीसें भी इस्लामी शरीयत में बुनियादी हैसियत रखती हैं.


लेकिन,
वोह इस लिए के उन की ज़ुबाने हक्क़, क़ुरआने करीम का ही बयान थी.

यही वजह है के जब किसी मासूम (अ.स.) से अपने बयान की सच्चाई पेश करने के लिये दलील तलब कर ली जाती थी तव आप बिला ताम्मुल और देरी के कुरआने मजीद की आयात पढ़ दिया करते थे और 

जिस मक़ाम पर सामईन को मासूम के किसी बयान को कुरआन के मुताबिक़  होना मालूम होता था तो वह ख़ामोशी से मासूम की बातें सुनते थे

इसी बिना पर तो मासूम ने खुद बार बार इरशाद फ़रमाया के हमारी हदीसों में से जो कुरआन के मुताबिक़ न हो उसे दीवार पर मार दो, वह हमारी नहीं बल्कि हमारी तरफ मंसूब कर दी गई है. अगर  वह  हमारी है तो वह कुरआन के ख़िलाफ़ नहीं हो सकती.

चुनान्चे, मासूमीन का कुर आन के साथ होना और कुर आन का उन के साथ होना हदीसे सक़लैन और नबी (स.अ.) से दूसरी हदीसें से साफ़ ज़ाहिर है.

बहेर कय्फ़ दीनी और इस्लामी ओलूम का दारोमदार और बुनियाद कुरआन मजीद ही है.